Home Article महाराष्ट्र में भी जनता के मुद्दों पर जातीय समीकरण भारी

महाराष्ट्र में भी जनता के मुद्दों पर जातीय समीकरण भारी

महाराष्ट्र में भी जनता के मुद्दों पर जातीय समीकरण भारी

शाहिद नकवी

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस बार बहुत ज़्यादा नाटकीयता देखने को मिल सकती है,क्योंकि इसमें सेना बनाम सेना,पवार बनाम पवार और कांग्रेस बनाम भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है। मराठा आरक्षण आंदोलन, मुसलमान, उत्तर भारतीय, दोनों गठबंधन में शामिल छह दलों की अलग अलग कवर फायर रणनीति के साथ मुख्‍यमंत्री लाडकी बहिण’ योजना के इर्द-गिर्द ही चुनावी चकल्लस चलेगी।

दरअसल महाराष्ट्र में 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से राजनीतिक परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया है,वरन अप्रत्याशित उथल-पुथल भी हुई है।जिसमें पार्टी विभाजन और सत्ता परिवर्तन केंद्र में रहे हैं। इसी के चलते राजनीत‍िक दलों की सीरत तो नहीं बदली,पर सूरत काफी बदल ही चुकी है।राज्य की जनता ने एक के बाद एक कई सियासी झटके देखे।लेकिन क्या जनता इन झटकों को पचा पाई, यह आने वाले कुछ हफ़्तों में साफ हो जाएगा। लेकिन ये भी तथ्य है कि महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में में ये पहला चुनाव है,जब जातिय गणित से सराबोर दो प्रमुख विचारधाराओं या गठबंधनों के बीच मुकाबला नहीं हो रहा।

महाराष्ट्र के चुनावी इतिहास के पन्नों को पलटने से दिखता है कि यहां अब तक धर्मनिरपेक्षता और दक्षिणपंथी विचारधारा के बीच चुनाव होता रहा है।लेकिन 2024 में ये लड़ाई बीजेपी के साथ बनाम बीजेपी के विरोध में तब्दील हो गई है।इसकी वजह से इस बार विचारधारा का ध्रुवीकरण अब पहले जैसा नहीं दिख रहा है।देश के अधिकांश हिस्सों में भाजपा चुनावी राजनीति में मुसलमानों से परहेज़ करती है।

इसीलिए उसके बड़े से बड़े नेता भी चुनावी अभियानों में धार्मिक धुर्वीकरण से संकोच नहीं करते हैं।लेकिन महाराष्ट्र में इस बार जो राजनीतिक परिदृश्य उभरा है,वह इस मामले में पिछले चुनावों से एकदम अलग है।भाजपा गठबंधन में शामिल दलों के लिए तो कई सीटों पर जीत का मंत्र ही मुसलमान हैं।एक बड़ा उदाहरण अणुशक्ति नगर विधानसभा सीट है ।ये सीट अजित पवार गुट के हिस्से में आई है।

महायुति का हिस्सा और उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने इस सीट से सना मलिक को उतारा है।अणुशक्ति नगर का प्रतिनिधित्व 2009 से नवाब मलिक ने किया था।हालांकि 2014 में वे हार गए थे। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नवाब मलिक फिर से जीत गए थे।नवाब मलिक कौशल विकास और अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए कैबिनेट सदस्य थे, और फरवरी 2022 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। तब सना मलिक ने पिता के निर्वाचन क्षेत्र के कामों को देखा।अजित पवार ने सना मलिक को कुछ दिनों पहले ही एनसीपी का प्रवक्ता नियुक्त किया था।अजित पवार ने बांद्रा पश्चिम से बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी को मैदान में उतारा है।

सनद रहे कि हाल में ही मुम्बई में बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी गई थी।ये बड़ा तथ्य है कि महाराष्ट्र में 16 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं,जो चुनावी मैदान में सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।हालांकि, मुस्लिमों की भी अपनी पार्टियां हैं,लेकिन उनमें इतना दमखम नहीं कि वे अकेले किसी को साथ लेकर अपनी सरकार बना सकें।

उत्तरी कोंकण,मराठवाड़ा,पश्चिमी विदर्भ और मुंबई के इलाके में करीब 35- 40 विधानसभा सीटों पर ये वर्ग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन इसमें से करीब 22 सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं।2019 चुनाव में 10 मुस्लिम विधायक जीते थे।इससे ही मुस्लिम सियासत को समझा जा सकता है।मुम्बई क्षेत्र में उत्तर भारतीय मुसलमानों की बहुतायत है।मुंबई में रहने वाले मुसलमानों की कुल आबादी का करीब 70 फीसदी उत्तर-भारतीय हैं, बाकी के 30 प्रतिशत में मराठी, दक्षिण भारतीय, गुजराती और दूसरे अन्य राज्यों के मुसलमान शामिल हैं।

कांग्रेस मुंबई में पांच सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट देती रही, जिनमें से चार उत्तर-भारतीय चेहरे रहते हैं। फैजाबाद जिले से आने वाले नसीम खान, सुहैया अशरफ और सैयद अहमद कांग्रेस के उत्तर भारतीय चेहरा हुआ करते थे, लेकिन अब असलम शेख और नसीम अहमद बचे हैं। ऐसे में देखना है कि 2024 के चुनाव में उत्तर भारतीय मुस्लिम क्या अपना सियासी वर्चस्व बनाए रख पाते हैं?महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी में आमने-सामने की ही लड़ाई है।ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम कई जगहों पर मुस्लिम वोटों को काटने का काम करती रही है। पर शायद मीडिया में चलते उस प्रचार से मुस्लिम प्रभावित दिखते हैं जिसमें आरोप लगाया जाता है कि ओवैसी की पार्टी अपने लिए चुनाव नहीं लड़ती है।

इसी तरह पहले की तरह मुस्लिम वोट को कोई धार्मिक संगठन भी प्रभावित नहीं करता है।इस लिए मुस्लिम वोटिंग का ट्रेंड बदल रहा है,जो हर चुनाव और क्षेत्र में अलग होता है।अब आमने सामने केवल दो ही पार्टियां या गठबंधन रह जाएंगे।ऐसे में महायुति गठबंधन की रणनीति है कि कुछ परसेंट वोट भी मुसलमानों का अगर वो हासिल नहीं कर पाते हैं तो चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में करना असंभव होगा।इसी लिए अजित पवार के मुस्लिम कार्ड का महायुति में कोई विरोध नहीं हो रहा है।भाजपा ने भी मौन धारण कर रखा है।

सन 2019 में भाजपा ने महाराष्ट्र में 105 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं।महाराष्‍ट्र में भाजपा हरियाणा जैसे अन्य राज्यों में अपनी सफलताओं को दोहराने की कोशिश करेगी,जहां उसने कांग्रेस की लोकलुभावन ‘फ्री’ वाले चुनावी ऐलान को मात दी।कांग्रेस ने मुफ़्त बिजली और व्यापक स्वास्थ्य सेवा लाभ का वादा किया।

वहीं भाजपा ने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और महिलाओं को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता जैसी लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के साथ जवाब दिया था। इसी रणनीति के तहत महाराष्ट्र में भी भाजपा ने मध्य प्रदेश की तर्ज पर मुख्‍यमंत्री लाडकी बहिण’ योजना की शुरुआत कर दी है। इस योजना से मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को पिछले कई चुनावों में अपार सफलता मिली है।हालांकि महाराष्ट्र में इसे हाल में ही लागू किया गया है,इस लिए इस चुनाव में इसका टेस्ट होगा,कि ये महिलाओं में कहां तक पैठ बना सकी है।महाराष्ट्र की राजनीतिक नब्ज़ पर पकड़ रखने वाले कहते हैं।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन का गढ़ रहे मराठवाड़ा पर विधानसभा चुनाव में सभी की निगाहें टिकी हैं,क्योंकि जातीय ध्रुवीकरण से प्रभावित इस क्षेत्र की 46 विधानसभा सीटें क्या गुल खिलाएंगी,इसका अनुमान अभी किसी को नहीं है।मराठवाड़ा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना (अविभाजित) गठबंधन को 28 सीटें दी थीं।

भाजपा को 16 और शिवसेना को 12 सीटें मिली थीं।कांग्रेस और राकांपा को आठ-आठ सीटें और अन्य को दो सीटें मिली थीं।लेकिन 2023 के मध्य से मराठा समुदाय को कुनबी (खेतिहर मराठा) का दर्जा देकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे में आरक्षण दिलवाने के लिए शुरू हुए आंदोलन ने पूरे मराठवाड़ा की हवा बदल दी है।पिछले लोकसभा चुनाव में मराठवाड़ा से भाजपा को एक भी सीट नहीं जीतने दी। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए मराठवाड़ा के दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी उसकी कोई मदद नहीं कर पाए थे।

इस क्षेत्र की कुल आठ लोकसभा सीटों में से तीन कांग्रेस जीती, तीन शिवसेना (यूबीटी) एवं राकांपा (शरदचंद्र पवार) एवं एक शिवसेना (शिंदे)ने जीती थी।जातीय गणित के आधार पर देखें तो आठ में से सात मराठा उम्मीदवार जीते।जातीय ध्रुवीकरण की स्थिति ऐसी रही कि छत्रपति संभाजी महाराज नगर (पूर्व नाम औरंगाबाद) से मतदाताओं ने शिवसेना (यूबीटी) के ओबीसी उम्मीदवार चंद्रकांत खैरे को हराकर शिवसेना (शिंदे) के मराठा उम्मीदवार संदीपन भुमरे को जिताया।गोपीनाथ मुंडे मराठवाड़ा क्षेत्र के बड़े ओबीसी नेता रहे हैं। आज उनकी विरासत उनकी बेटी पंकजा मुंडे संभाल रही हैं।

पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में मराठों की आबादी 28 प्रतिशत,तो ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत है।करीब एक साल से चल रहे मनोज जरांगे पाटिल के मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण सबसे ज्यादा असुरक्षित ओबीसी समाज ही महसूस कर रहा है।वह नहीं चाहता कि उसके आरक्षण कोटे में कोई और आकर सेंध लगाए।

मराठा आंदोलन ने पिछले एक साल में खासतौर से मराठवाड़ा के गांव-गांव में ऐसी दरार डाली है कि दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा लेना भी बंद कर दिया है।मुस्लिम मतदाताओं की भांति ही वंचितों की भी बड़ी आबादी मराठवाड़ा में है। वंचित मतों का बंटवारा इन दिनों भाजपा के पाले में खड़े केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले एवं बहुजन विकास आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर के बीच होना है। ये सारे समीकरण मिलकर तय करेंगे कि मराठवाड़ा में ऊंट इस बार किस करवट बैठेगा।

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि महाराष्ट्र में मराठा और मुस्लिम वोट का एक बड़ा हिस्सा महाविकास अघाड़ी का पक्का है। ऐसे में भाजपा की नजर ओबीसी और एसटी वोटों को अपने पाले में लाने पर रहेगी।महाराष्ट्र में एससी वोट भी दोनों गठबंधन में बंटा हुआ है।ऐसे में भाजपा को बहुसंख्यक वोटों को साधना होगा।इसलिए शिवसेना-शिंदे और एनसीपी-अजीत मराठा आरक्षण को लेकर आवाज उठाएंगी तो बीजेपी पंचायत स्तर पर समुदायों के सम्मेलन कर ओबीसी और एसटी समुदाय को साधने में जुट गई है। हालांकि, भाजपा के लिए इन समुदायों का भरोसा जीतना आसान नहीं है।दूसरी ओर भाजपा के लिए छोटे दल और निर्दलीय भी चुनौती पेश कर सकते हैं।